ایک فریم کی خاموش طاقت
ثقافتی اتحاد
एक फ्रेम में छिपी ताकत
जब मैंने पहली बार ये तस्वीरें देखीं—रात को सिर्फ सन्नाटे में। किसी ‘वायरल’ पोस्ट के बजाय… सिर्फ सूरज की किरणों में लपटता हुआ सफ़ेद पोशाक में पड़ी महिला।
अच्छा है! कोई ‘गॉस्प’ नहीं… सिर्फ मौजूदगी।
कपड़े-भावना का संगम
दुनिया हमें सिखाती है: ‘पोज = पावर’, ‘दृष्टि = सुंदरता’… लेकिन कभी-कभी? खड़े होने का मतलब है: ‘सच में मौजूद होना’।
उस पल—आखिरकार—बस थम।
सच्चईयता: सबसे बड़ा बवंडर
इसके पीछे कोई ‘शुभ’ प्रयोग? नहीं। इसमें कोई ‘प्रदर्शन’? बिल्कुल नहीं।
बस — एक साँस, एक पल, और हमारे सभी ‘इच्छुक’ मन — कम हो गए!
#अब_वह_ऊपर_आया?
अगर ‘अच्छा’ होने के लिए #ऑफ-थ-फ्रेम (off-frame) होना पड़ता है… to kya hum sabki ek frame mein hi rehna chahiye? (यह #ध्यानवश / Quiet Power of a Single Frame)
आपको जब महसूस हुआ कि ‘वो’ (koi?)आपको देख – ज़्यादा? 😏 Comment section mein batao… main har ek padhti hoon! P.S.: Photo series ka naam yaad rakhna – 2018 wala! 😉

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